नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-34
लक्षणा यह भी सोच रही थी, कि वास्तव में यह सोचना भी बिल्कुल मिथ्या होगा, कि जो स्वप्न हम देखते हैं वह झूठ होते है, क्योंकि वह वास्तव में ही हमारे ही प्रतिरूप के द्वारा किया गया व्यवहार और उसके निवास स्थान या परिवेश का स्वप्न था। जो किसी आइने की तरह हमें नजर आता है। और यह सिर्फ हमारे ही साथ नहीं अपितु हमारे उस प्रतिरूप के साथ भी होता है।
लक्षणा का मतलब यह साफ़ है, कि लक्षणा जो अभी सोच रही है। वह विचार उन सभी सातों प्रतिरूपों में भी आ रहे। जिसकी खोज करने के लिए लक्षणा ने मन में सिर्फ इतना कहा, कि हां बिल्कुल सही और आंख बंद कर अपने विचारों को पढ़ने का प्रयास किया। तब ठीक वैसे ही प्रतिध्वनि उसके पास लौटकर वापस आईं। इसका मतलब यह भी था, कि वे सातों प्रतिरूप एक साथ बात कर सकती है। सुख दुःख अनुभव कर सकती है। साथ ही साथ खुद की मदद खुद के प्रतिरोध से ले सकती है।
गुरुदेव के कहे अनुसार जितना अब तक लक्षणा ने सुन रखा था। यह मार्ग इतना भी सरल नहीं था, और खासकर तब, जब की लक्षणा यह जान चुकी थी, कि इस मार्ग की प्रत्येक चुनौती को लगभग उन सभी प्रतिरूपों के साथ लक्षणा को उत्तीर्ण करना होगा। तब कहीं वह उस अवसर तक पहुंच पाएगी।
यह सोचते हुए लक्षणा मन में ईश्वर का ध्यान करते हुए आगे बढ़ रही थी, कि तभी लक्षणा ने देखा कि वह जिस पगडंडी से होकर आगे बढ़ रही है। उसके आगे बढ़ने के साथ ही साथ यह रास्ते अदृश्य होते जा रहे हैं, क्योंकि कुछ सोचने या वापसी का रास्ता शेष नहीं बचता। जब तक की लक्ष्य पूर्ण रूप में ना प्राप्त हो जाए। और इसके लिए वह वास्तव में पूर्ण मन से अब तक तैयार थी।
लक्षणा पगडंडी के रास्ते से होते हुए बड़े चले जा रही थी। बिना किसी नक्शे और दिशा सूचक यंत्र के, क्योंकि वह जानती थी और जैसा कि उसे अब तक की शिक्षा में बताया गया था, कि नागपत्री तक के रास्तों में पहुंचने वाले रास्तों में भटकाव नहीं सिर्फ परीक्षाएं है। जिसे उत्तीर्ण करने के पश्चात आगे का रास्ता स्वयं ही मिल जाता है।
लेकिन इस दौरान इसे पंचतत्व की कसौटी और समस्त प्रकार के प्राणियों की स्वीकृति अनिवार्य है। और इसके लिए उनकी भौतिक, मौलिक और शारीरिक क्षमता तीनों का ही आंकलन किया जाना आवश्यक है।
लक्षणा इसके लिए पूर्ण रूप से सजक और अपने आप को अब तक तैयार करते आई है। और इसी क्रम में उसने अपना प्रथम चरण पार कर दूसरे दरवाजे की और बढ़ गई। लेकिन यह तो सिर्फ प्रवेश था , परीक्षा तो अभी बाकी थी।
पगडंडी पर आगे बढ़ते समय लक्षणा ने ध्यान दिया कि वो जिस रास्ते से आगे बढ़ रही थी, उसमें शुष्कता धीरे-धीरे बढ़ते जा रही थी। और अचानक तेज हवाओं के साथ आंधियां चलने लगी।और देखते ही देखते वह शुष्क मरुभूमि आग की लपटों में घिर गई, और इन सबके बीच एक छोटा हिरण का शावक यहां वहां जो अब तक अठकेलियां कर रहा था। उस अग्नि में घिर गया। और अपने बचाव के लिए इधर-उधर भागने लगा।
वह हिरण का शावक जिधर भी जाता। वह आग की लपटे उसे घेर लेती। लेकिन सिर्फ एक रास्ता शेष था। लक्षणा और शावक दोनों एक ही पथ पर थे। लेकिन उसकी तेज गति और उछल कूद को देख लक्षणा घबरा रही थी, और वही लक्षणा की उपस्थिति से वह शावक और भी ज्यादा चिंतित था। लेकिन मकसद दोनों का अग्नि से बचाव का ही था।
तब लक्षणा ने थोडी धीरता रखते हुए उस शावक को अपने पास बुलाया और अपनी गोद में ले एक ऊंचे टीले की ओर भागने लगी , और वह सफल भी हुई। उस जगह ना तो आग थीं और ना ही किसी प्रकार की असुरक्षा। लक्षणा प्यार से उस शावक को पुचकारने लगी। ताकि उसका भय कम हो।
उस शावक ने पूर्ण सुरक्षित जगह देख उचटकर भागने के प्रयास में अपना एक पंजा दे मारा लक्षणा के सिर पर। जिसकी चोट से लक्षणा लगभग लगभग बेहोश सी हो गई और चक्कर मारकर वहीं गिर पड़ी। जब लक्षणा को होश आया तो उसने अपने आप को एक हरे-भरे वन क्षेत्र के बीच पाया। वहां अग्नि का नामो निशान भी नहीं था। और अनेकों शावक लक्षणा को घेरे हुए जैसे पुचकार रहे थे।
लक्षणा ने उठकर घबराकर देखा, तो वहां उपस्थित प्रधान शावक लक्षणा से कहने लगा। इस प्रकृति में प्रथम, सुंदर और चंचल जीवो में हमें माना जाता है। और इस पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने में हमारा महत्वपूर्ण योगदान भी है। जंगलों में लगने वाली आग प्राकृतिक नहीं है। वह मानवीय भूलों का भी कारण हो सकती है। जिसकी चपेट में आकर अनेकों जीव जंतु अपने प्राण त्याग देते हैं।
लक्षणा लेकिन जीवों के प्रति प्रेम सामर्थ्य की भावना ने तुम्हें विजयी बनाया। तुम्हारा कल्याण हो कहते हुए वह मृग अपने सींगों से जमीन खोदने का प्रयास कर रहा था। और इसी प्रयास में उसके सींग का एक हिस्सा टूट गया। तब वह मृग रुक कर कहने लगा। लक्षणा यह मेरे टूटे हुए सींग को संभाल कर अपने पास रखो। आने वाले आगे चरण में और सफर के समय तुम्हें उनकी आवश्यकता सहज महसूस होगी।
लक्षणा तुम जैसे-जैसे अपने एक-एक चरण को पूरा करोगी, वैसे-वैसे यह सींग अपना रूप परिवर्तित करता जाएगा, और अंत में जब तुम उसे नाग सरोवर तक पहुंच जाओगे, जहां नागपत्री सुरक्षित है। तब यह सींग एक कमल का रूप ले लेगा। उस समय उस कमल को तुम उस सरवर के दाहिने हिस्से में डाल देना। जिसे प्राप्त करने के लिए नागपत्री के सभी रक्षक इसकी और आकर्षित होंगे। और उतने ही समय में तुम्हें नाग स्वरूप प्रदान कर उस नागपत्री को स्पर्श कर लौटना है। साथ ही साथ उनसे विनती भी करनी है, कि वह अपनी असीम शक्ति का कुछ अंश इस सृष्टि के लिए कल्याण हेतू प्रदान करें।
लक्षणा उन मृग की बातों को बड़े ध्यान और गंभीरतापूर्वक सुन रही थी। और लक्षणा के मन में कुछ प्रश्न भी शेष थे, वे भी लक्षणा ने उनसे किए। उन मृग ने लक्षणा के सारे प्रश्न के उत्तर उसे दिए। और अगले चरण पर बड़ने के लिए आशीष प्रदान किया। अब लक्षणा निकल पड़ी अपने अगले चरण की ओर....
क्रमशः...